जिस तरह रोज़-रोज़ हर कोई एरा गैरा मुँह उठाये भारत के सर्वमान्य राष्टपिता मोहनदास करमचंद गाँधी पर टिप्पणी कर अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने में लगा रहता है। क्या यह सम्मानजनक है। मेरी दृष्टि में कदापि नहीं!
यह हमारे लिए बड़े शर्म की बात है कि हमने भारत के राष्ट्रपति को तो आदर सूचक दायरे में ले लिए हैं, इनके लिए हम "महामहिम" शब्द का उपयोग करते हैं किंतु आदिकाल से चिर स्थायी रहने वाला सम्बोधन "राष्ट्रपिता" शब्द के लिए अभी तक कोई भी क़ानून हम नहीं बना पाये हैं।
राष्ट्रपिता शब्द को कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने धूल-धूसरित करते रहने का प्रण कर लिया है। जबकि बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी "बापू" हमारी आन-बान और शान हैं। "महात्मा" जैसा महान गरिमा और सम्माननीय शब्द युगों युगों तक केवल "बापू" जैसे व्यक्तित्व के लिए ही गढ़ा जाता है, किसी तुच्छ सड़कछाप बकलोल के लिए नहीं।
आज भारत के लोकसभा चुनाव सम्पन्न हुए। सरकार चाहे जिस भी दल की बने किन्तु हमारी अस्मिता के प्रतीक "बापू" की मर्यादा के लिए संसद में कठोरतम क़ानून बनना ही चाहिए ताकि अब से किसी भी छुटभैये की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपमानित करने की हिम्मत न हो सके।
क़ानून में यह भी प्रावधान हो कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सम्मान में किसी भी प्रकार के अमर्यादित शब्दों का प्रयोग करता है तथापि वह किसी सत्ताधारी दल या किसी राजनैतिक दल से सम्बद्ध हो तब उस दल के नेता के विरुद्ध भी दण्डात्मक कार्यवाही होनी चाहिये। अपनी बात कहने की स्वतंत्रता के कदापि यह मायने नहीं कि कोई भी हमारी राष्ट्रीय गरिमा के लिये कुछ भी अनाप-शनाप बकलोली करे।
दोस्तों यह मेरे अपने विचार हैं, यदि आप सहमत हैं तब मेरी यह पोस्ट ज़रूर अपने सभी सोशल मीडिया पर शेयर कीजिये।
सैयद महमूद अली चिश्ती सीनियर जर्नलिस्ट, यूट्यूबर, ब्लॉगर, सोशल मीडिया एक्सपर्ट, आरटीआई एक्टिविस्ट।
chishtimahmood786@gmail.com
No comments:
Post a Comment