HAPPY MOTHER'S DAY
मेरी माँ और मैं
मां पर किसने क्या नहीं लिखा. दुनिया लिख डाली. उर्दू ग़ज़ल में मां पर सबसे ज़्यादा मुनव्वर राना ने लिखा है. उनसे पहले ग़ज़ल में सब कुछ था. माशूक़, महबूब, हुस्न, साक़ी सब. तरक़्क़ीपसंद अदब और बग़ावत भी. पर मां नहीं थी. इसलिए उन्होंने कहा भी है कि,
मेरे पसंदीदा शायर मुनव्वर राणा ने मां पर क्या खूब कहा-
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
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