Saturday, November 18, 2017

The Right to Information act 2005. What and why in India?

The Right to Information act 2005. सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 क्या और कैसे? 
दोस्तों सूचना का अधिकार क़ानून पहले से विश्व के अनेकों देशों में प्रभावी है। भारत में संसद ने इसे 2005 में क़ानूनी रूप देकर इसे भारत के आम नागरिकों के उपयोगार्थ राजपत्र में प्रकाशित किया। सूचनाधिकार से सम्बंधित निम्नलिखित बातों का जानना नितांत आवश्यक है।
सूचनाधिकार का उपयोग आम नागरिक कैसे करें:-
1):  आपको जिस लोकप्रधिकारी की जानकारी चाहिए   
       उसकी सर्वप्रथम भलीभांति पहचान कीजिएगा;
2):  उस लोक सूचना अधिकारी को चिन्हित कीजिए जिसके
       पास आपकी चाही गयी जानकारी है;
3):  जानकारी प्राप्त करने के लिए एक्ट की धारा अंतर्गत
       अपना आवेदन पत्र लिखकर तैयार कीजिए;
4):   अपने आवेदन पत्र में जानकारी का स्पष्ट उल्लेख 
        कीजिये, जैसे-किस अवधि की जानकारी चाहिए,
        किस योजना की जानकारी चाहिए, किस फ़ाइल से
        सम्बन्धित जानकारी चाहिए, किस रूप में जानकारी
        चाहिए। जैसे फोटोकॉपी, सीडी, फ्लॉपी, प्रिंटआउट,
        अवलोकन अथवा निरीक्षण आदि।
5):   आवेदन पत्र के साथ शुल्क रुपये दस नगद, आई पी ओ
        (भारत पोस्टल आर्डर), ड्राफ़्ट या बैंकर्स चेक के रूप में
         जमा कीजिएगा।
6):    आवेदन पत्र में अपना पत्राचार सम्पूर्ण पता दीजिये 
         सम्भव हो तब अपना मोबाईल नम्बर अथवा फ़ोन 
         नम्बर भी दीजिये।
7):    सम्बन्धित लोक सूचना अधिकारी/ जनसूचना 
         अधिकारी अथवा Public Information Officer
         के कार्यालय में आवेदन पत्र जमा कर पावती प्राप्त 
         कीजिएगा;
8):    निर्णय की प्रतीक्षा कीजिएगा;
9):    30 दिन में जानकारी न मिलने पर अपीलीय अधिकारी 
         के पास आवेदन कीजिएगा। यदि जानकारी मिल भी 
         गयी किन्तु आपको लगता है कि यह जानकारी सही 
         नहीं है या आधी अधूरी जानकारी दी गई है, तो आप
         आप जानकारी प्राप्त होने के दिन से 30 दिन के अंदर
         अपीलीय अधिकारी के पास अपील कर सकते हैं।
10):  अपीलीय अधिकारी के स्तर से भी यदि समुचित 
         कार्यवाही न की जा रही हो अर्थात आपको जानकारी
         उपलब्ध न हो तो द्वितीय अपील 90 दिन के अंदर 
         सूचना आयोग के समक्ष कीजिएगा।
सूचनाधिकार अधिनियम 2005 के तहत आप जानकारी निम्नलिखित रूप में प्राप्त कर सकते हैं:-
1):     कार्यालय अभिलेख, फाईलों एवम कार्यों का 
          निरीक्षण;
2):     कार्यालय में संधारित अभिलेख अथवा दस्तावेजों की 
          प्रमाणित फोटोकॉपी;
3):     सामग्री के प्रमाणित नमूने;
4):     कंप्यूटर में उपलब्ध जानकारी को सीडी/ फ्लॉपी, टेप,
          वीडियो कैसेट या प्रिंटआउट के रूप में।
          अधिक जानकारी के लिए आप हमें ईमेल से भी 
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Tuesday, November 14, 2017

The right to information in India

                सूचना का अधिकार अधिनियम 2005
, दोस्तों सूचनाधिकार क़ानून एक ऐसा क़ानून है, जिसके ज़रिये आप भारत के किसी भी बड़े से बड़े नौकरशाह, राजनेता और किसी महान व्यक्ति की जानकारी ले सकते हैं। समाज के अंतिम छोर के अंतिम व्यक्ति तक सरकार के हर काम की सूचना सहज सरल रूप में उपलब्ध हो यही इस कानून की मंशा है।

                 सूचनाधिकार के तहत आप किसी भी सरकारी काम मे हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर कर सकते हैं। सरकार की समाज के हितार्थ संचालित योजनाओं को सार्वजनिक तौर पर लाभदायी बना सकते हैं। केवल दस रुपए का इंडियन पोस्टल ऑर्डर, डिमाण्ड ड्राफ्ट या बैंकर्स चेक आवेदन शुल्क के रूप में सम्बन्धित विभाग जिससे जानकारी वांछित है उसके लेखाधिकारी को सम्बोधित सूचनाधिकार की धारा (6)(1) के तहत उनके दफ़्तर में जमा कराकर पावती लेनी होती है।
                  सूचनाधिकार के तहत आवेदन पर सम्बन्धित लोक सेवक को तीस दिनों के अंदर जानकारी सशुल्क उपलब्ध करानी होती है अन्यथा जानकारी बिना किसी शुल्क लिए देनी होती है। सूचनाधिकार भारत के आम नागरिकों के लिए एक ब्रह्मास्त्र भी है किंतु कई लोगों ने इसे पेशा भी बना रखा है इससे वास्तविक सूचनाधिकार कार्यकर्ता भी बदनाम होते हैं।
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खबरों का पोस्टमार्टम। आख़िर क्यों?

आपने अधिकतर देखा होगा कि कैसे स्वयम्भू टी व्ही न्यूज़ चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए एक ही खबर को घण्टों नहीं बल्कि हफ़्तों तक घसीटते हैं। जिन्हें सिर्फ़ अपने विज्ञापनों से मतलब होता है न कि दर्शकों से।
         अभी कई ऐसे ही मामले सामने आए हैं जिनमें टी व्ही न्यूज़ चैनलों ने हद ही कर दी जैसे राम रहीम वाला मुद्दा। इस मुद्दे को टी व्ही न्यूज़ चैनलों ने इतना दिखाया कि भारत का बच्चा बच्चा बाबा राम रहीम को जानने लगा साथ ही उनकी निज सचिव हनीप्रीत का प्रचार मुफ़्त में। खोदा पहाड़ और निकली चुहिया।
           अभी भी देश में कई ऐसे ज्वलन्त मुद्दे हैं जिनपर इन महानुभाव का ध्यान नहीं जाता क्योंकि ऐसी ख़बरों से इन्हें विज्ञापन नहीं मिलेंगे। बेरोज़गारी, भुखमरी, नवजात शिशु मृत्यु, ग़रीबी आदि।
           आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
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Monday, November 13, 2017

ज़िन्दगी और ज़िंदादिली।

पत्रकारिता के पेशे में रात दिन ख़बरों के पीछे की भागदौड़। सबसे पहले मुझे मिले कोई मसालेदार ख़बर जिससे स्टाफ़ और दर्शकों-पाठकों में ज़्यादा से ज़्यादा लोकप्रियता मिले। यही गुनतारा लगा रहता है। ख़बर बहतर मिली तो ठीक वरना दिनभर की भागदौड़ के बाद ख़ुद पर खीज। ऐसी खीज जिसमें खुद का कोई दोष नहीं लेकिन फ़िर भी ग़ुस्सा खुद पर ही।
          रात करवटों में गुज़ारने के बाद सुबह फ़िर कोई न कोई नई धमाकेदार ख़बर की ख़ोज में दिन की शुरुआत।

Saturday, November 11, 2017

पीत पत्रकारिता और चाटूकारिता।

             पीत पत्रकारिता अर्थात येलो जर्नलिज्म। किसी की चाटूकारिता करना, भाटगिरी करना या सीधे लफ़्ज़ों में चमचागिरी करना, किसी के पीछे हाथ धोकर नहीं अपितु नहा धोकर पड़ जाना। किसी से कोई आर्थिक हित सीधा करने के लिए उसे सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित करने को ही पीत पत्रकारिता कहते हैं। यह मेरा अभिमत है। ज़रूरी नहीं कि आप सब भी मेरी सोच से सहमत हों।
              आज भारत में एक साथ कई टी व्ही न्यूज़ चैनल यही सब कर रहे हैं। कोई सरकार की भाटगिरी कर करोड़ों के विज्ञापन हथिया रहा है तो किसी का मालिक सरकार के साथ होकर आर्थिक सिद्धियां प्राप्त कर रहा है।
               आज पत्रकारिता में जो निरपेक्ष है उसकी कोई गिनती नहीं है और जो किसी के साथ है वही फ़ल-फ़ूल रहा है। आप भी अगर पत्रकार हैं और श्रेष्ठ चाटुकार नहीं हैं तो माफ़ कीजिए आप स्वयं को थोथी दिलासा ही देते रहेंगे और आपसे कई पायदानों पीछे के चाटुकार आपको पीछे धकेल तेज़ी से आगे बढ़ जाएँगे। क्षमा सहित। सैयद महमूद अली चिश्ती समूह सम्पादक अग्निचक्र समूह।
agnichakrlivenews.blogspot.com

Friday, November 10, 2017

बदलता देश, बदलती पत्रकारिता।

                आधुनिक युग में विश्व का तेजी से भूमण्डलीकरण हो रहा है। नए नए ब्रांड की फोर व्हीलर से लेकर बेहतर लुक और स्टाइल में स्कूटर के साथ टू व्हीलर भी मार्किट में मौजूद है।
                 मीडिया में भी आधुनिक तकनीक का अत्यधिक उपयोग और कंप्यूटिकरण तेज़ी से विस्तार ले रहा है। डेस्कटॉप की जगह लैपटॉप और लैपटॉप की जगह टैबलेट और अब टैब की जगह स्मार्ट फोन ने लेकर पत्रकारिता को सहज सुलभ संसाधन दे दिया है।

Wednesday, November 8, 2017

एंड्राइड पत्रकारिता।

                दोस्तों आज विज्ञान के इस महान आविष्कार ने हम पत्रकारों की पत्रकारिता को कितना आसान कर दिया है। केवल एक मोबाईल फ़ोन ने हमारी पत्रकारिता को बेहद आसान बना दिया है।
                 न फ़ोटो के लिए कैमरा, न टाइपिंग के लिए डेस्कटॉप/लैपटॉप और न इंटरनेट के लिए ब्रॉडबैंड कनेक्शन। सभी काम पलक झपकते हमारे जेब में रखा एंड्राइड मोबाइल फोन कर देता है, अब वीडियो न्यूज़ भी हाई डेफिनेशन में हम अपने स्मार्ट फोन से बनाकर तुरन्त अपने चैनल को भेज सकते हैं।
                 सिर्फ़ मोबाईल फोन ने हमारी आधुनिक पत्रकारिता को कितना आसान कर दिया है। आप अब घर बैठे अपने मोबाइल फोन की सहायता से ऑनलाइन इनकम भी जनरेट कर सकते हैं। एक वेबसाइट के माध्यम से, एक न्यूज एप्प के ज़रिए या एक यूट्यूब चैनल के माध्यम से।

Tuesday, November 7, 2017

अग्निचक्र मीडिया हाउस, भोपाल।

साथियों क्रांतिकारी अभिवादन।     
           अग्निचक्र मीडिया हाउस
में जुड़कर पत्रकारिता करने का भारत के युवा साथियों को आत्मिक आमंत्रण।
भारत के 12 राज्यों में सैकड़ों ब्यूरो साथियों के साथ दिनभर की ताज़ातरीन वीडियो खबरों के लिए देखते रहिए। नीचे दी गई लिंक को क्लिक कर सब्सक्राइब के लाल बटन को दबाइये और घण्टे के बटन को दबाकर हमेशा खबरों से अपडेट रहीए। 👇

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Thursday, November 2, 2017

भारत की तब और अब की सर्वसुविधायुक्त पत्रकारिता।

                 एक समय था जब एक ख़बर को कवर करने के लिए पत्रकारों को साईकल से कोसों दूर तक सफ़र करना पड़ता था। सायकल में टायर पंक्चर का सामान और हवा पम्प भी साथ रखना होता था। ख़बर अगर कहीं ज़्यादा दूरी पर होती तो साथ में सेव परवल, प्याज़, नींबू और पानी भी रखना होता था। फ़ोटो के लिए रोल कैमरा, आवाज़ के लिए माइक्रो टेप रिकॉर्डर अलग से।
                  ख़बर कवरेज के बाद अब सम्बंधित प्रकाशन संस्थान तक भेजने का काम शुरू होता, घण्टों पोस्ट ऑफिस में खड़े रहकर अर्जेन्ट ख़बर भेजने के लिए ट्रंक कॉल बुक करना या दैनन्दिनी ख़बर को टेलीग्राम से भेजने के लिए भी पोस्ट ऑफिस की चौखट पर हाज़री देनी पड़ती थी।
                   कुछ अरसे बाद आया बस से लिफ़ाफ़ा में ख़बर लिखकर भेजने का ज़माना। प्रिंट मीडिया का दौर ही था। मध्यप्रदेश में इंदौर से प्रकाशित नईदुनिया का बोलबाला चहुँ ओर था। टीम भी बहतरीन पत्रकारों की उस दौर में नईदुनिया के साथ थी। एक लाइन भी नईदुनिया में किसी अधिकारी के ख़िलाफ़ छप जाना मतलब उस अधिकारी का नौकरी से हाथ धो घर बैठ जाना तय था।
                    ज़माना गुज़रता रहा और विज्ञान ने पत्रकारिता के स्वरूप में आमूल चूल परिवर्तन करने शुरू किए। आयरन लेडी इंदिरा गांधी की मौत का समाचार दूरदर्शन से लाइव प्रसारित किया गया। इनकी अंत्येष्टि का समाचार भी दूरदर्शन पर ही देश भर के नागरिकों ने देखा। भारत में सूचना क्रांति का यह कस्बाई दस्तक ने लोगों के मन में श्वेत श्याम और फ़िर कलर टी व्ही के प्रति जिज्ञासा को जन्म दिया।
                    देखते देखते दूरदर्शन पर फ़ीचर फ़िल्म, नाच-गानों के साथ साथ कुछ देर के लिए समाचारों का प्रसारण भी किया जाने लगा। भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को लेकर आने का श्रेय जाता है इण्डिया टुडे ग्रुप को। इण्डिया टुडे ग्रुप ने सर्वप्रथम "आजतक " नाम से सम्भवतया भारत प्रथम निजी समाचार चैनल टी व्ही पर लाया। देखते देखते आज सैकड़ों की तादाद में राष्ट्रीय, प्रादेशिक और ज़िला स्तरीय टी व्ही न्यूज़ चैनल अस्तित्व में हैं। इनके साथ ही क्षेत्रीय और भाषाई चैनल भी अस्तित्व में हैं।
                     आज प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ साथ ई-मीडिया भी बहुत तेज़ी से अपनी पहचान बना रहा है। पाठकों, दर्शकों को अपने एंड्रॉयड मोबाइल पर ही समाचार पढ़ने और देखने को आसानी से मिल जाते हैं। आज एंड्रॉयड मोबाइल फोन ने पत्रकारों के एक नए वर्ग को जन्म दे दिया है और वह है " सिटिज़न जर्नलिस्ट ", एक एंड्रॉयड मोबाइल फोन धारक आम आदमी के सामने घटित घटना का स्पॉट पर ही फ़ोटो और वहीं स्क्रिप्ट और अपलोड कर दिया फेसबुक, ट्विटर, जी+, व्हाट्सएप, हाइक, टेलीग्राम, टम्बलर, पिंटरेस्ट जैसे विश्वस्तरीय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर। जब तक वास्तविक पत्रकार सम्बंधित समाचार के पास पहुंचता है तब तक यह नागरिक पत्रकार उस समाचार को लोगों तक भेज चुका होता है।
सैयद महमूद अली चिश्ती समूह संपादक अग्निचक्र समाचार पत्र समूह, भोपाल मध्यप्रदेश।
agnichakr2018@gmail.com
            

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