Tuesday, February 26, 2019

बेहाल पाकिस्तान को देश में मत मिलाना, सपोलों का पेट भी भरना पड़ेगा।

एक बम घर में छुपे गद्दारों पर भी गिरा दो।

बेहाल पाकिस्तान को देश में मत मिलाना, सपोलों का पेट भी भरना पड़ेगा।

                      हमारे सुझाव पर सेना के लिए खोले गए बैंक अकाउंट को दुनिया मे बसे भारतीय दिल खोल कर सहयोग कर रहे है

                       मध्यप्रदेश की पावन धरती से वायुसेना के बम वर्षक मिराज ने उड़ान भरी और पकिस्तान के नापाक करतूतों के अड्डों को उड़ा दिया। अगर हमने हमारे देश का नमक खा कर गद्दारी करने वालों के ऊपर बम गिरा दिया तो पाकिस्तान पर बम गिराने की जरूरत ही नही पड़ेगी । पाकिस्तान खुद पाई-पाई के लिए मोहताज हो रहा है। उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया अर्थात पाकिस्तान से हर तरह का व्यापार, लेना और देना बंद कर दिया तो पाकिस्तानियों की अक्ल भी ठिकाने पर आ जाएगी, यह बहुत जरुरी है कि पाकिस्तान के नागरिकों की अक्ल ठिकाने पर आए और औकात पता चले। फिर वो खुद भारतीय सेना को पाकिस्तान में बुला कर आतंकियों को मारने का निवेदन करने लगेगे। यही चीन के साथ भी करना चाहिए, चाईना आईटम पर भी रोक लगा देना चाहिए, फिर देखो भारत के आगे दोनो कैसे घुटने टेकते है । दोनो देश हमसे कमाई करके हम पर ही गुर्राते है । पाकिस्तानी और चीनी सामग्री के बहिष्कार की हमने मुहिम चलाई थी, जिसको पूरे देश में समर्थन मिला और मिल रहा है । हमारा कहना है सरकार की कोई मजबूरी हो सकती है, हम भारतियों की नही, सरकार पूरी तरह रोक नही लगा सकती है, पर हम भारतीय अपना स्वार्थ छोड़ दे तो ये कर सकते है । पाकिस्तान को जीत कर भारत में मिला लेना भारतीय सेना के लिए बड़ी बात नही है, सवाल यह उठता है कि उन गद्दारों को मिला कर उनको भी पालना पड़ेगा, सपोलों का पेट भी भरना पड़ेगा, मैं तो कहता हु जो भारत में रह कर पाकिस्तान के नापाक कामों का और आतंकियों का समर्थन करे, सेना पर पत्थर बरसाए उन्हें पाकिस्तान भेज देना चाहिए । पाकिस्तानियों की भूखों मरने की नौबत आ गई है, आर्थिक तंगी के कारण वहा अराजकता आने के साथ आपस में मार-काट मचने वाली है। अगर हमने पाकिस्तान को जीत लिया तो सपोलों का पेट भी भरना पड़ेगा, जो हमारे लिए ही खराब होगा, वो तो कटोरा लेकर उधार बैठे है । एक बम देश में छुपे गद्दारों पर भी गिरा तो तो बड़ी समस्या खत्म हो जाएगी। क्योंकि यही देश के दुश्मन आतंकियों को पनाह देते है और बचाव करते है, सेना पर पत्थरबाजी करते है और जब मुसीबत आती है तो सेना से ही मदद लेते है। उन सभी को आतंकवादियों की तरह पकड़ना और उड़ाना शुरू कर दो जो आतंकियों की जानकारी छुपाते है और साथ देते है, क्योंकि परिवार के अन्य सदस्यों को पता होता है उनके परिवार का कोई सदस्य आतंकवादी बन चुका है, सैनिक देश की और नागरिकों की रक्षा के लिए अपनी जान की आहुति देते है , पुलवामा जैसी घटनाओं में शामिल आतंकियों के परिवार के सभी सदस्यों को आरोपी बनाना चाहिए, पुलिस तो अधिकतर मामलों में यही करती है..... भारतीयों आप क्या कहते हैं? राजेन्द्र के.गुप्ता के सुझाव पर सेना के लिए  खोले गए बैंक खाते " आर्मी वेलफेयर फन्ड बेटल केजुअल्टिज " को दुनिया मे बसे भारतीयों से भारी समर्थन मिल रहा है, जनता इसमे खूब सहयोग कर रही है। हमारे सुझाव के कारण शहीद सैनिकों के परिवार को भी भारतीय सीधे आर्थिक सहयोग कर रहे हैं।

कौन हैं यह मासूमों के क़ातिल। भाजपा ने क्यों दिया पद।

मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा से अपहृत दो जुड़वा मासूम श्रेयांश और प्रियांश की हत्या के बाद भाजपा जो कर रही है उसे राजनीति नही बल्कि मानसिक दिव्यांगता और जनता को मूर्ख समझने व बनाने का दुस्साहस कहते हैं।

उत्तरप्रदेश में तेल का व्यापार करने वाले उत्तरप्रदेश के चित्रकूट जिले के करबी थाना क्षेत्र के निवासी बृजेश रावत के दो मासूमों का अपहरण उत्तरप्रदेश के बदमाशों द्वारा किया गया, अपहरण के बाद मासूमों को उत्तरप्रदेश में ही रखा गया, फिरौती के सभी फोन भी उत्तरप्रदेश से ही आये और फिर उत्तरप्रदेश में ही दोनों मासूमों की हत्या की गई, उत्तरप्रदेश के बबेरू क्षेत्र से दोनों मासूमों का शव भी बरामद हुआ।

इस पूरी घटना में मध्यप्रदेश का जुड़ाव सिर्फ इतना था कि दोनों बच्चे उत्तरप्रदेश से सटे सतना जिले के चित्रकूट के सदगुरू पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे।

घटना उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश की सीमा पर होने की वजह से जो भी तलाशी अभियान चलाया गया वह भी उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश पुलिस का संयुक्त अभियान था।

आरोपियों के नाम इस प्रकार हैं :-
1. राजू द्विवेदी पुत्र राकेश कुमार द्विवेदी  निवासी भवुआ अंस थाना बबेरू जिला बांदा उत्तर प्रदेश।
2. पदम शुक्ला पुत्र रामकरण शुक्ला उम्र 22 वर्ष निवासी जानकीकुण्ड रघुवीर मंदिर के सामने थाना नयागांव चित्रकूट।
3. लकी सिंह तोमर पुत्र सतेन्द्र सिंह तोमर निवासी ग्राम तेदुरा थाना विसण्डा जिला बांदा उत्तर प्रदेश।
4. रोहित द्विवेदी पुत्र बृहम्मदत्त द्विवेदी उम्र 24 वर्ष निवासी भवुआ अंस थाना बबेरू जिला बांदा उत्तर प्रदेश।
5. रामकेश यादव पिता रामेशरण यादव उम्र 26 वर्ष निवासी छेरा जिला बांदा उत्तर प्रदेश।
6. पिन्टू उर्फ पिन्टा पिता रामस्वरूप यादव उम्र 23 वर्ष निवासी गुरदहा जिला हमीरपुर उत्तर प्रदेश।

गौरतलब यह है कि अपहरण में अपराधियों ने जिस गाड़ी का उपयोग किया वह बजरंग दल की थी और उस पर बीजेपी का झण्डा लगा था। आरोपियों के फ़ेसबुक और सोशल मीडिया अकाउंट से भाजपा से संबद्धता भी प्रमाणित हो चुकी है।

अब बात मुद्दे की -
यूपी में, यूपी के बच्चों की हत्या, यूपी के आरोपी, यूपी में लाश बरामद, फ़रियादी यूपी के निवासी, यूपी की पुलिस भी विफल...लेकिन यूपी की भाजपा सरकार ना तो दोषी है और ना ही भाजपा सरकार से कोई सवाल किया जायेगा..?

मप्र के भाजपा नेता कांग्रेस सरकार से सवाल कर रहे हैं पर अपराध करने वालों के भाजपा से संबन्ध पर मौन हैं, यूपी की बीजेपी सरकार पर मौन हैं..?

ये राजनीति का कौन सा रूप है जहाँ एक दल से संबद्ध कुछ आरोपियों ने हत्या की और उसी दल के लोग प्रदर्शन और आंदोलन कर जनता की आँखों में धूल झोंकने का दुस्साहस कर रहे हैं..? ये राजनीति नही बल्कि बेशर्मी और फूहड़ता है...प्रदर्शन ही करना है तो उन भाजपाईयों के घर जाकर करो जो इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त हैं।

और हाँ...योगी सरकार से कोई सवाल मत कर लेना, मरना-मारना तो उनकी सरकार का सर्वप्रिय पेशा जो है।

कलमकार भी विज्ञापन की भागदौड़ में उतावले।

१५ वर्षो से निन्द्रा सुख भोग रहे मध्य प्रदेश के बहुतर क़लमकार सत्ता परिवर्तन होते ही जाग गए हैं, नयी सरकार की निंदा करने के लिए इतना ज़्यादा उतावलापन है कि सत्ता हस्तांतरण के महीने भर बाद से ही किड़े निकालने चालू कर दिए, नयी सरकार के हर निर्णय की जिस तरह मीडिया द्वारा समीक्षा की जा रही है वह मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर रही है, मीडिया का बदला हुआ रवयया साफ दर्शाता है कि सरकार जाने की पीड़ा सिर्फ़ भाजपा को ही नहीं उसकी विचारधारा को समवेत कर चुके मीडिया संस्थाओं और क़लमकारो को भी हे और यही चिंता का विषय है।
                          सत्ता से सवाल होना चाहिए में भी इसका पक्षधर हूँ पर किसी भी नयी सरकार को कम से कम १०० दिन का समय तो देना ही चाहिए पर पिछले पंद्रह सालो में व्यापम, डंपर, रेत खनन और क़ानून व्यवस्था पर मूक दर्शक बन सत्ता धारी दल की ढाल बने रहे मीडिया का अचानक जाग जाना स्वागत योग्य है पर जागते ही अपने पुराने आक़ा के सुर में सुर मिलाना इसकी विश्वसनीयता को संदेह के घेरे में खड़ा कर रहा है।

छाया नटों से घिरती मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार।

छाया नटों से घिरती सरकार

                            डेढ़ दशक के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस की कमलनाथ के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार "छाया नटों" से घिरती नजर आ रही है .शिवराज सिंह चौहान की पूर्ववर्ती कमल छाप सरकार के मुकाबले इस सरकार के इर्द-गिर्द  "छाया नट" कुछ ज्यादा ही हैं और उनका दखल साफ़ नजर आने लगा है।
                             प्रदेश की नयी सरकार की विवशता थी कि वो प्रशासनिक मशीनरी को अपनी जरूरत के हिसाब सी "ट्यून" करे ,इसके लिए तबादले आवश्यक थे,लेकिन जिस संख्या में तबादले और उनमें संशोधन हुए हैं उसे देखकर लगता है कि प्रदेश में तबादला प्रशासनिक जरूरत नहीं अपितु एक नया उद्योग हो गया है .जमीनी स्तर से लेकर सचिवालय स्तर तक जमकर तबादले हुए और जब असंतोष भड़का तो उतनी ही संख्या में तबादला आदेशों में संशोधन भी किये गए .जाहिर है कि इस सबके पीछे जन प्रतिनिधि कम "छाया नट" अधिक सक्रिय रहे।
                             मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ विसंगति ये है कि वे तीन तरफ से घिरे हैं किन्तु घिरे दिखना नहीं चाहते .न चाहते हुए भी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह,पार्टी के महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया और अन्य छोटे-मोठे धड़ों की बात उन्हें मानकर सरकार चलाना पड़ रही   है. मुख्यमंत्री तो समन्वय की कोशिश में है लेकिन उनके साथ काम कर रही युवाओं की टीम इस तथाकथित समन्वय के लिए राजी नहीं दिखाई देती .पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रदेश के युवा मंत्रियों के बीच का खतो-किताबत सबको याद होगा ही।
                         प्रदेश में कानून और व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली वारदातों को लेकर भी प्रदेश सरकार की छवि धूमिल हुई है.प्रदेश पुलिस के नए मुखिया अभी तक पुलिस फ़ोर्स को ये इंगित नहीं कर पाए हैं कि वे प्रदेश में कैसी पुलिसिंग चाहते हैं. पुलिस महानिदेशक की विवशता ये है कि उनके महकमे में अभी तक तबादलों का मौसम जारी है.अस्थिरता के माहौल में वे किसी से कहें भी तो क्या कहें ?लेकिन उन्हें जल्द ही कुछ न कुछ करना पडेगा अन्यथा उनकी छवि भी उनके पूर्ववर्ती पुलिस महानिदेशक जैसी हो जाएगी .सतना में दोहरे अपहरण और हत्या के बाद से तो ये विषय और अधिक गंभीर हो गया है .हाल ही में  एक टोल नाके पर सत्तारूढ़ सल के एक विधायक पुत्र के गिरोह द्वारा की गयी फायरिंग भी रेखांकित की जाने लायक है हालांकि विधायक जी इसका प्रतिवाद कर चुके हैं।
                        बीते दिनों उज्जैन में मौजूद हमारे एक मित्र ने जब एक पूर्व मुख्यमंत्री का कारवां देखा तो उन्होंने मुझसे प्रश्न किया कि- क्या प्रदेश में पहले भी ऐसा होता था ?उनके सवाल का जबाब मै कैसे दे पाया ये मै ही जानता हूँ किन्तु यदि ऐसे ही सवाल आम जनता के मन में भी उठने लगे तो सरकार को सवालों का जबाब देना कठिन हो जाएगा .वक्त की जरूरत है कि मुख्यमंत्री चाहे जो हो प्रदेश में सत्ता के समानांतर केंद्र न पनपने दें भले ही इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकाना पड़े।
                        प्रदेश में भाजपा की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के पंद्रह वर्षों में सत्ता के अनेक समानांतर केंद्र बने और बिगड़े लेकिन मानना पडेगा कि शिवराज ने अपनी जुगत से एक-एक कर सबको नेस्तनाबूद कर दिया था .भले ही उन्हें बाद में इसकी कीमत चुकाना पड़ी लेकिन उन्होंने सूबे में जब तक राज किया,निष्कंटक किया। मुख्यमंत्री कमलनाथ से शिवराज सिंह चौहान के मधुर संबंध हैं वे चाहें तो इस विषय में उनसे परामर्श कर सकते हैं।
                        भाजपा शासन में सत्ता का सबसे बड़ा समानांतर केंद्र आरएसएस हुआ करती थी,कांग्रेस में इस तरह की कोई संस्था नहीं है है और जो है उसकी कोई हैसियत नहीं है .किन्तु दूसरी ध्यान देने योग्य बात ये है कि आरएसएस समानांतर सत्ता केंद्र होते हुए भी इतनी सक्षम थी कि वो मुख्यमंत्री के रास्ते के अवरोधों को हटाती  रहती थी.कांग्रेस के पास इस तरह की कोई इकाई नहीं है सिवाय हाईकमान के। अब आप रोज-रोज तो हाईकमान के पास जा नहीं सकते।
                        नयी सरकार नयी जनाकांक्षाओं के साथ आम चुनावों में कूदने जा रही है,यदि उसे अपनी छवि और उपलब्धियों को कायम रखना है तो उसके लिए सबसे बड़ी और पहली चुनौती ये "छाया नट" और उनकी समानांतर सत्ता है .इनके बीच समन्वय कायम किये बिना कांग्रेस तीन से तरह के अंक तक नहीं पहुँच सकती ,लेकिन यदि मुख्यमंत्री कमलनाथ इन "छाया नटों" को नाथ पाए तो लोकसभा में वे पार्टी की झोली में तीन की जगह बीस सीटें भी डाल सकते हैं ऐसा गणित कहता है।
                         सत्ता के छाया नट भी जानते हैं कि उनकी दूकान जब तक चल रही है। तब तक चल रही है और जिस दिन उठी उस दिन उसे कोई बचा नहीं पायेगा ."छाया नट" भी यदि सम्हलकर चलें तो उनके सर्कस भी चलते रह सकते हैं और उनकी पार्टी का कल्याण भी हो सकता है लेकिन इसके लिए लालच पर लगाम तो देना ही पड़ेगी।
@ राकेश अचल

Saturday, February 16, 2019

जागरूकता फैलाने का सबसे बेहतर माध्यम है रेडियोः श्री पुष्पेंद्र पाल सिंह।

जागरूकता फैलाने का सबसे बेहतर माध्यम है रेडियोः श्री पुष्पेंद्र पाल सिंह।
                रेडियो ने अभी तक लंबा और महत्वपूर्ण सफर तय किया है और वर्तमान समय में भी संचार माध्यम के रूप में रेडियो की प्रासंगिकता बनी हुई है। आज के दौर में भी रेडियो लोगों के बीच जागरूकता फैलाने का सबसे बेहतर माध्यम है। रेडियो एक ऐसा माध्यम है जिसकी भौगोलिक रूप से देश के 99 प्रतिशत हिस्से में पहुंच है और इसने देश के सामाजिक विकास और परिवर्तन में महत्वूपर्ण भूमिका निभाया है। ये बातें मध्य प्रदेश ‘माध्यम’ में ओएसडी श्री पुष्पेंद्र पाल सिंह ने पीआईबी, शोध पत्रिका ‘समागम’ एवं पब्लिक रिलेशंस सोसायटी, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में 16 फरवरी 2019 (शनिवार) को पीआईबी के सभागार में 'रेडियोः कल, आज और कल' विषय पर आयोजित कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि रेडियो बहुत ही सस्ता, सुगम और सरल माध्यम है। श्री सिंह ने कहा कि समय के साथ रेडियो का दौर भी बदलता रहा और जब कभी भी यह लगा कि रेडियो अब तो बीते दिनों की बात हो जाएगी, तभी रेडियो एक नए अवतार में सामने आया और अपनी प्रासंगिकता साबित की। उन्होंने कहा कि कम्यूनिटी रेडियो एक लोकतांत्रिक रेडियो है और इसके जरिए लोग अपनी भाषा में अपनी बात अपने लोगों के बीच कह रहे हैं। कार्यक्रम में सबसे पहले पुलवामा हमले में शहीद हुए वीर जवानों को मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।

      शोध पत्रिका समागम के संपादक श्री मनोज कुमार ने कहा कि रेडियो का भविष्य उज्ज्वल है। उन्होंने कहा कि आज का दौर कम्यूनिटी रेडियो का दौर है और मध्य प्रदेश में मौजूदा दौर में 9 कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन काम कर रहे हैं और जनता के बीच विकासपरक पत्रकारिता को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने इस बात जोर दिया कि रेडियो प्रसारण में भाषा की सौम्यता बनी रहनी चाहिए।

बिग एम की रेडियो जॉकी अनादि ने कहा कि आज के एफएम रेडियो पर मार्केट का दबाव काफी अधिक है। सच कहें तो आज के एफएम के दौर में 20 फीसदी रेडियो है और 80 फीसदी मार्केट है। पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि युवाओं में एफएम चैनल्स काफी लोकप्रिय हैं। उन्होंने कहा कि आज के रेडियो कार्यक्रमों में फन का एलिमेंट ज्यादा है।

भारतीय सूचना सेवा के पूर्व अधिकारी श्री विनोद नागर ने आकाशवाणी समाचार में बिताए अपने दिनों को याद किया और कहा कि रेडियो राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि रेडियो ने लोगों को सूचना देने, शिक्षित करने और मनोरंजन करने में काफी महत्वूर्ण भूमिका अदा की है। उन्होंने रेडियो के बारे में कई रोचक तथ्य भी लोगों के साथ शेयर किए।

पीआईबी, भोपाल के उप निदेशक श्री अखिल कुमार नामदेव ने कहा कि रेडियो की पहुंच अन्य संचार माध्यमों की तुलना में ज्यादा है। यही वजह है कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपनी ‘मन की बात’ कहने के लिए रेडियो (आकाशवाणी) को ही माध्यम के रूप में चुना। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रोताओं ने हिस्सेदारी की और अपने प्रश्नों के द्वारा अपनी जिज्ञासाओं को शांत किया।

डॉ प्रकाश हिंदुस्तानी की क़लम।

इस्लामाबाद की छाती पर लिखें हमारी सेना का पराक्रम

प्रधानमंत्री जी। जी हां, बिना किसी सम्मानसूचक शब्द और अभिवादन के ही आपको यह पत्र लिख रहा हूं।  क्योंकि बीते करीब चौबीस घंटे से खयाल में यदि कोई सम्मानसूचक शब्द चल रहा है, तो वह केवल ‘शहीद’ है। इसी अवधि से अभिवादन के रूप में ‘हत्यारा पाकिस्तान’ ही कुलबुला रहा है। पुलवामा में कल जो कुछ हुआ, वह सिर्फ हमारे जवानों की नृशंस हत्या ही नहीं, बल्कि  पाकिस्तान का आपसे सीधा-सा सवाल है, कि ‘क्या बिगाड़ लोगे?’
प्रधानमंत्री जी, सर्जिकल स्ट्राइक पर यकीन  रखने वाला देश यह विश्वास भी रख रहा है कि आप फिर ऐसा कोई कदम उठाएंगे। लेकिन इस बार केवल ऐसा करने से काम नहीं चलेगा। सोलहवीं लोकसभा के सत्रों का अवसान हो चुका है। संसद के अगले सत्र में प्रधानमंत्री के तौर पर कौन नजर आएगा, कोई नहीं जानता। यह भी नहीं पता कि अगले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देश किसका संबोधन सुनेगा। फिर भी फिलहाल तो आप हैं। तो कुछ ऐसा कीजिए कि संसद में अगला प्रधानमंत्री 14 फरवरी, 2019 के बाद की देश की सबसे बड़ी उपलब्धि गिनाए। पाकिस्तान के पालतू चार सौ से अधिक आतंकियों के धड़ से अलग किए गए सिर के फोटोग्राफ्स के साथ। वह प्रधानमंत्री आप हों या कोई और, लेकिन तब तक कुछ ऐसा हो सके कि यह देश आपके पराक्रम के चलते पाकिस्तान की तबाही का साक्षी बन जाए। चीन सहित सारी दुनिया यह देख सके कि भारत की भूमि पर नापाक कदम उठाने वालों को किस तरह समूल नष्ट किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री जी, आपने तो इजरायल से मित्रता की है। उस दोस्त से सीखिए कि किस तरह देश की ओर खराब नजर उठाने वालों को उनके घर में घुसकर मारा जाता है। डोनाल्ड ट्रम्प आपके मुरीद हैं, तो उनके पूर्ववर्ती जॉर्ज बुश जूनियर से सीखिए कि कैसे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले की कीमत तालिबानियों के सामूहिक नरसंहार के रूप में वसूली जाती है। बराक ओबामा से सबक लीजिए कि किस तरह ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकियों को कुत्ते की मौत मारा जाता है। यह देश  सब-कुछ भूलने को तैयार है। वह नोटबंदी की कतार में लगे लोगों की मौत को बिसरा देगा। जीएसटी के नाम पर व्यापारियों द्वारा की जा  रही लूट-खसोट के दर्द को अपनी नीयति मानकर चुप हो जाएगा। हरेक खातें में पंद्रह-पंद्रह लाख न आने के मलाल को भुला देगा। लेकिन उसके कानों से उस धमाके की गूंज शांत नहीं हो पाएगी जो कल पुलवामा में हुआ। इस धमाके की भरपाई केवल वह चीखें कर सकती हैं, जो कल हुए हमले के षड़यंत्रकारियों और उन के समर्थकों का गला काटे जाने पर सुनाई देंगी।
कल का हमला बेहद असामान्य इसलिए भी है कि इसमें सीरिया और अफगानिस्तान जैसी आतंकी वारदातों की झलक मिलती है। इसका अर्थ समझिए। वह यह है कि इस देश में आतंकवाद और गंभीर रूप लेता जा रहा है। कश्मीर में आए दिन इस्लामिक स्टेट के समर्थन में झंडे फहराये जाते हैं। उन घटनाओं पर सख्ती से काबू न पाने का नतीजा है कि आज हालात यहां तक पहुंच चुके हैं। उन्हें और बिगड़ने से रोकिए। र्इंट का जवाब पत्थर नहीं बल्कि गोला-बारूद से दीजिए। लिख दीजिए इस्लामाबाद की छाती पर आतंकवादियों के खून से हमारी महान सेना की पराक्रम गाथा। भौंकने दीजिए छद्म मानवाधिकार संगठनों और बिकाऊ मीडिया को। दुम हिलाते रहने दीजिए अलगाववादियों और उनके नाम का पट्टा बांधकर कश्मीर में सेना पर पथराव करते गद्दारों को। यह आशा अतिरंजित लग सकती है, लेकिन यकीन मानिए, कल के घटनाक्रम से कराह रहे देश के जख्मों पर अब इसी तरह से मरहम लगाया जा सकता है।

Thursday, February 14, 2019

देशहित और अण्डे वाली मुर्गी।

मुर्गी अंडे दे रही थी और मालिक बेंच रहा था।
मुर्गी देशहित में अंडे दे रही थी।
उसके मालिक ने कहा था-
’’ आज राष्ट्र को तुम्हारे अंडों की जरूरत है।
यदि तुम चाहती हो कि तुम्हारा घर सोने का बन जाये तो जम के अंडे दिया करो। आज तक तुमसे अंडे तो लिये गये लेकिन तुम्हारा घर किसी ने सोने का नही बनवाया। हम करेंगे। तुम्हारा विकास करके छोड़ेंगे।’’

मुर्गी खुशी से नाचने लगी।
उसने सोचा देश को मेरी भी जरूरत पड़ती है।
वाह मैं एक क्या कल से दो अंडे दूंगी।
देश है तो मैं हूं।
वह दो अंडे देने लगी।

मालिक खुश था।
अंडे बेचकर खूब पैसे कमा रहा था।
मालिक निहायत लालची सेठ था।
उसने मुर्गी की खुराक कम कर दी।
मुर्गी चौंकी। -’’ आज मुझे पर्याप्त खुराक नहीं दी गई। कोई समस्या है क्या ?’’
-’’ देश आज संकट में है। किसी भी मुर्गी को पूरा अन्न खाने का हक नहीं। जब तक एक भी मुर्गी भूखी है मैं खुद पूरा आहार नहीं लूंगी। हम देश के लिए संकट सहेंगे।’’
मुर्गी आधा पेट खाकर अंडे देने लगी। मालिक अंडे बेचकर अपना घर भर रहा था।
बरसात में मुर्गी का घर नहीं बन पाया।
मुर्गी बोली- आप मेरे सारे अंडे ले रहे हैं। मुझे आधा पेट खाने को दे रहे है। कहा था कि घर सोने का बनेगा। नहीं बना। मेरे घर की मरम्मत तो करवा दो।
मालिक भावुक हो गया।
बोला "तुमने कभी सोचा है इस देश में कितनी मुर्गियां हैं जिनके सर पर छत नहीं हैं। रात-रात भर रोती रहती हैं। तुम्हें अपनी पड़ी है। तुम्हें देश के बारे में सोचना चाहिए। अपने लिए सोचना तो स्वार्थ है।’’

मुर्गी चुप हो गई। देशहित में मौन रहने में ही उसने भलाई  समझी।

अब वह अंडे नहीं दे पा रही थी।
कमजोर हो गई थी।
न खाने का ठिकाना न रहने का।
वह बोलना चाहती थी लेकिन भयभीत थी।
वह पूछना चाहती थी-
"इतने पैसे जो जमा कर रहे हो-  वह क्यों और किसके लिए?
देशहित में कितना लगाया है?" लेकिन पूछ नहीं पाई।

एक दिन मालिक आया और बोला- ’’ मेरी प्यारी मुर्गी तुझे देशहित में मरना पड़ेगा। देश तुमसे बलिदान मांग रहा है। तुम्हारी मौत हजारों मुर्गियों को जीवन देगा।’’ 
मुर्गी बोली "लेकिन मालिक मैने तो देश के लिय बहुत कुछ किया है।"
मालिक ने कहा अब तुम्हे शहीद होने पड़ेगा।
बेचारी मुर्गी को अब सब कुछ समझ आ गया था
लेकिन अब वक्त जा चुका था और मुर्गी कमज़ोर हो चुकी थी, मालिक ने मुर्गी को बेच दिया।

मुर्गी किसी बड़े भूखे सेठ के पेट का भोजन बन चुकी थी।

मुर्गी देशहित में शहीद हो गई।🐔🙊🙈
नोट- जो आप सोच रहे हैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
ये सिर्फ एक मुर्गी की कहानी है।
युवा बेरोजगारों, किसानों, मध्यवर्गीय नागरिकों, मजदूरों, गरीबों, कर्मचारियों को और अधिक उन्मादी होकर राष्ट्रभक्ति में बिना चू चप्पड़ किये देशी नेताओं और  कॉरपोरेट्स की तिजोरी भरना महान राष्ट्रभक्ति और युगधर्म की कसौटी है। इसपर चलते रहें।

जब पेंशन के रूप में अपना अधिकार मांगेंगे तो कहेंगे कि देश पर बोझ पड़ेगा और जब अपने वेतन भत्ते बढ़ाने होंगे तो हाथ उठाकर बिना बहस किये बढा लेंगे,हमे एक भी पेंशन नही देंगे और स्वयं तीन तीन पेंशन लेंगे।

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मोदी की जीत भारतीय राजनैतिक चेतना का तीसरा सोपान है।

उनके लिए जिन्हें देश से प्रेम भी है और देश की फिक्र भी है मोदी की जीत भारतीय राजनैतिक चेतना का तीसरा सोपान है। पिछड़ों और दलितों की राजनीत...