Sunday, December 30, 2018

2018 में अर्थव्यवस्था के साथ कई अन्य क्षेत्रों के विभिन्न आंकड़ों सहित व्यापक पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन ने मोदी सरकार की नाकामी की पोल खोल कर रख दी: रोज़गार और नोटबंदी बनी बड़ी परेशानी का सबब।

2018 में अर्थव्यवस्था के साथ कई अन्य क्षेत्रों के विभिन्न आंकड़ों सहित व्यापक पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन ने मोदी सरकार की नाकामी की पोल खोल कर रख दी: रोज़गार और नोटबंदी बनी बड़ी परेशानी का सबब।

साल 2018 में सरकार के प्रदर्शन और अर्थव्यवस्था सहित कई अन्य क्षेत्रों के विभिन्न आंकड़ों का अनूठा तालमेल नजर आता है। चाहे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर का आंकड़ा हो या रोजगार सृजन का या किसानों की आय का या फिर गो हिंसा का आंकड़ा, इन सभी से साल 2018 में हुई विभिन्न गतिविधियों की झलक मिलती है।

भारत में इस साल रोजगार सबसे बड़ी चुनौती रही और इस बारे में कहीं से कोई राहतभरी खबर नहीं आई। एम्प्लॉइमेट रेट को कॉन्स्टैंट रखने के लिए सालाना 82 लाख नौकरियों की जरूरत है। साल 2017 में महज 20 लाख नौकरियों का सृजन हुआ। नरेंद्र मोदी ने सालाना एक करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था।

नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा 2016 में की गई नोटबंदी का असल असर इस साल आना शुरू हुआ और यह उम्मीदों के अनुकूल नहीं है।

व्यापक पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन की वजह से कृषकों का संकट मीडिया और बड़े शहरों के लोगों के ध्यान में आया। आंकड़े बेहद गंभीर हैं। खेती-किसानी से बहुत ही कम आय हो रही है। एक किसान परिवार की कुल मासिक आय 6,426 रुपये है। इसमें मजदूरी का योगदान 2,071 रुपये, कृषि से 3,081 रुपये, पशुपालन से 763 रुपये और गैर-कृषि कार्यों से 512 रुपये है। सबसे बड़ी बात यह है कि 52 फीसदी कृषक परिवारों पर कर्ज है। औसतन हर किसान परिवार पर 47,000 रुपये का कर्ज है, जिनमें से उन्होंने 60 फीसदी कर्ज बैंक या वित्तीय संस्थान से, जबकि 26 फीसदी कर्ज महाजनों से लिए गए हैं।

साल 2018 की शुरुआत में बीजेपी आश्वस्त थी कि वह इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बाजी मार ले जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बाजी मारना सत्तारूढ़ दल के लिए आसान नहीं होने वाला है।

बीजेपी के सत्ता में आने के बाद उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में दिसंबर में एक पुलिसकर्मी और एक युवक की हुई हत्या ने एक बार फिर गोहिंसा की खबरों को सुर्खियों में ला दिया।

जिन घटनाओं के बारे में फुसफुसाहट में बातें होती थीं, साल 2018 में उनपर लोग खुलकर सामने आए। इस साल मीडिया, ऐंटरटेनमेंट और राजनीति सहित विभिन्न क्षेत्रों में यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर पीड़िता खुलकर सामने आईं और अपने साथ हुई ज्यादतियों को लोगों के बीच रखा। जिस के चलते एक केंद्रीय मंत्री को अपना पद गंवाना पड़ा और कम से कम पांच पत्रकारों को पद छोड़ने के लिए कहा गया।

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