Tuesday, February 26, 2019

कलमकार भी विज्ञापन की भागदौड़ में उतावले।

१५ वर्षो से निन्द्रा सुख भोग रहे मध्य प्रदेश के बहुतर क़लमकार सत्ता परिवर्तन होते ही जाग गए हैं, नयी सरकार की निंदा करने के लिए इतना ज़्यादा उतावलापन है कि सत्ता हस्तांतरण के महीने भर बाद से ही किड़े निकालने चालू कर दिए, नयी सरकार के हर निर्णय की जिस तरह मीडिया द्वारा समीक्षा की जा रही है वह मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर रही है, मीडिया का बदला हुआ रवयया साफ दर्शाता है कि सरकार जाने की पीड़ा सिर्फ़ भाजपा को ही नहीं उसकी विचारधारा को समवेत कर चुके मीडिया संस्थाओं और क़लमकारो को भी हे और यही चिंता का विषय है।
                          सत्ता से सवाल होना चाहिए में भी इसका पक्षधर हूँ पर किसी भी नयी सरकार को कम से कम १०० दिन का समय तो देना ही चाहिए पर पिछले पंद्रह सालो में व्यापम, डंपर, रेत खनन और क़ानून व्यवस्था पर मूक दर्शक बन सत्ता धारी दल की ढाल बने रहे मीडिया का अचानक जाग जाना स्वागत योग्य है पर जागते ही अपने पुराने आक़ा के सुर में सुर मिलाना इसकी विश्वसनीयता को संदेह के घेरे में खड़ा कर रहा है।

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