Tuesday, February 26, 2019

छाया नटों से घिरती मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार।

छाया नटों से घिरती सरकार

                            डेढ़ दशक के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस की कमलनाथ के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार "छाया नटों" से घिरती नजर आ रही है .शिवराज सिंह चौहान की पूर्ववर्ती कमल छाप सरकार के मुकाबले इस सरकार के इर्द-गिर्द  "छाया नट" कुछ ज्यादा ही हैं और उनका दखल साफ़ नजर आने लगा है।
                             प्रदेश की नयी सरकार की विवशता थी कि वो प्रशासनिक मशीनरी को अपनी जरूरत के हिसाब सी "ट्यून" करे ,इसके लिए तबादले आवश्यक थे,लेकिन जिस संख्या में तबादले और उनमें संशोधन हुए हैं उसे देखकर लगता है कि प्रदेश में तबादला प्रशासनिक जरूरत नहीं अपितु एक नया उद्योग हो गया है .जमीनी स्तर से लेकर सचिवालय स्तर तक जमकर तबादले हुए और जब असंतोष भड़का तो उतनी ही संख्या में तबादला आदेशों में संशोधन भी किये गए .जाहिर है कि इस सबके पीछे जन प्रतिनिधि कम "छाया नट" अधिक सक्रिय रहे।
                             मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ विसंगति ये है कि वे तीन तरफ से घिरे हैं किन्तु घिरे दिखना नहीं चाहते .न चाहते हुए भी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह,पार्टी के महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया और अन्य छोटे-मोठे धड़ों की बात उन्हें मानकर सरकार चलाना पड़ रही   है. मुख्यमंत्री तो समन्वय की कोशिश में है लेकिन उनके साथ काम कर रही युवाओं की टीम इस तथाकथित समन्वय के लिए राजी नहीं दिखाई देती .पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रदेश के युवा मंत्रियों के बीच का खतो-किताबत सबको याद होगा ही।
                         प्रदेश में कानून और व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली वारदातों को लेकर भी प्रदेश सरकार की छवि धूमिल हुई है.प्रदेश पुलिस के नए मुखिया अभी तक पुलिस फ़ोर्स को ये इंगित नहीं कर पाए हैं कि वे प्रदेश में कैसी पुलिसिंग चाहते हैं. पुलिस महानिदेशक की विवशता ये है कि उनके महकमे में अभी तक तबादलों का मौसम जारी है.अस्थिरता के माहौल में वे किसी से कहें भी तो क्या कहें ?लेकिन उन्हें जल्द ही कुछ न कुछ करना पडेगा अन्यथा उनकी छवि भी उनके पूर्ववर्ती पुलिस महानिदेशक जैसी हो जाएगी .सतना में दोहरे अपहरण और हत्या के बाद से तो ये विषय और अधिक गंभीर हो गया है .हाल ही में  एक टोल नाके पर सत्तारूढ़ सल के एक विधायक पुत्र के गिरोह द्वारा की गयी फायरिंग भी रेखांकित की जाने लायक है हालांकि विधायक जी इसका प्रतिवाद कर चुके हैं।
                        बीते दिनों उज्जैन में मौजूद हमारे एक मित्र ने जब एक पूर्व मुख्यमंत्री का कारवां देखा तो उन्होंने मुझसे प्रश्न किया कि- क्या प्रदेश में पहले भी ऐसा होता था ?उनके सवाल का जबाब मै कैसे दे पाया ये मै ही जानता हूँ किन्तु यदि ऐसे ही सवाल आम जनता के मन में भी उठने लगे तो सरकार को सवालों का जबाब देना कठिन हो जाएगा .वक्त की जरूरत है कि मुख्यमंत्री चाहे जो हो प्रदेश में सत्ता के समानांतर केंद्र न पनपने दें भले ही इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकाना पड़े।
                        प्रदेश में भाजपा की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के पंद्रह वर्षों में सत्ता के अनेक समानांतर केंद्र बने और बिगड़े लेकिन मानना पडेगा कि शिवराज ने अपनी जुगत से एक-एक कर सबको नेस्तनाबूद कर दिया था .भले ही उन्हें बाद में इसकी कीमत चुकाना पड़ी लेकिन उन्होंने सूबे में जब तक राज किया,निष्कंटक किया। मुख्यमंत्री कमलनाथ से शिवराज सिंह चौहान के मधुर संबंध हैं वे चाहें तो इस विषय में उनसे परामर्श कर सकते हैं।
                        भाजपा शासन में सत्ता का सबसे बड़ा समानांतर केंद्र आरएसएस हुआ करती थी,कांग्रेस में इस तरह की कोई संस्था नहीं है है और जो है उसकी कोई हैसियत नहीं है .किन्तु दूसरी ध्यान देने योग्य बात ये है कि आरएसएस समानांतर सत्ता केंद्र होते हुए भी इतनी सक्षम थी कि वो मुख्यमंत्री के रास्ते के अवरोधों को हटाती  रहती थी.कांग्रेस के पास इस तरह की कोई इकाई नहीं है सिवाय हाईकमान के। अब आप रोज-रोज तो हाईकमान के पास जा नहीं सकते।
                        नयी सरकार नयी जनाकांक्षाओं के साथ आम चुनावों में कूदने जा रही है,यदि उसे अपनी छवि और उपलब्धियों को कायम रखना है तो उसके लिए सबसे बड़ी और पहली चुनौती ये "छाया नट" और उनकी समानांतर सत्ता है .इनके बीच समन्वय कायम किये बिना कांग्रेस तीन से तरह के अंक तक नहीं पहुँच सकती ,लेकिन यदि मुख्यमंत्री कमलनाथ इन "छाया नटों" को नाथ पाए तो लोकसभा में वे पार्टी की झोली में तीन की जगह बीस सीटें भी डाल सकते हैं ऐसा गणित कहता है।
                         सत्ता के छाया नट भी जानते हैं कि उनकी दूकान जब तक चल रही है। तब तक चल रही है और जिस दिन उठी उस दिन उसे कोई बचा नहीं पायेगा ."छाया नट" भी यदि सम्हलकर चलें तो उनके सर्कस भी चलते रह सकते हैं और उनकी पार्टी का कल्याण भी हो सकता है लेकिन इसके लिए लालच पर लगाम तो देना ही पड़ेगी।
@ राकेश अचल

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